startling banals

19 June 2007

Madhushala

धर्मग्रंथ सब जला चुकी है, धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है जिसके अंतर की ज्वाला
मंदिर मस्जिद गिरिजे सबको तोड़ चूका जो मतवाला
पंडित मोमिन पादरियों के फंदो को जो काट चुका
कर सकती है आज उसीका स्वागत मेरी मधुशाला।...


Every time I listen to the two mp3s of this epic poem, I wonder at the wit and great sense of Harivanshrai Bachchan. Manna Dey has put his heart and soul in rendering this poem. I uploaded them. Parts 1 and 2. Thirty minutes of peace and pleasure.

मेरे शव के पींचे चलने वालो याद इसे रखना,
राम नाम है सत्य ना कहना, कहना सच्ची मधुशाला

नाम अगर कोई पूंचे
तो, कहना बस पीने वाला
जाती प्रिये पूंचे यदि कोई, कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालो की ले माला जपना मधुशाला

प्राण प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालो को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला

Google pointed me to a webpage that gives a nice commentary on Bachchan's poetry. I also learnt that मधुशाला was published in 1935!!

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